विद्युत विभाग:संघर्ष समिति का निजीकरण के विरोध में सभी जनपदों व परियोजनाओं पर ‘बिजली पंचायत’ कर व्यापक जन जागरण अभियान
वाराणासी/लखनऊ 1 दिसंबर:बिजली के निजीकरण के विरोध में सभी जनपदों व परियोजनाओं पर ‘बिजली पंचायत’ कर व्यापक जन जागरण अभियान : 22 दिसम्बर को लखनऊ में बिजली कर्मियों, उपभोक्ताओं व किसानों की विशाल रैली : 06 दिसम्बर को निजीकरण के विरोध में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन।
चेयरमैन की तानाशाही मंशा/रवैये से बिजली कर्मियों में भारी गुस्सा
संघर्ष समिति ने कहा कि प्रबन्धन बर्खास्तगी और उत्पीड़न का भय पैदाकर, निजीकरण थोपना चाहता है। शीर्ष प्रबन्धन ने कल प्रयागराज में कहा कि सबसे लिखित ले लो कि वे निजीकरण के पक्ष में हैं। जो कर्मचारी लिखकर न दे उसे बर्खास्त कर दिया जायेगा। संघर्ष समिति ने कहा कि प्रबन्धन के इस तानाशाही रवैय्ये से बिजली कर्मियों में भारी गुस्सा है।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने निर्णय लिया है कि बिजली के निजीकरण के विरोध में प्रदेश भर में सभी जनपदों में ‘बिजली पंचायत’ कर आम उपभोक्ताओं और कर्मचारियों को निजीकरण के दुष्प्रभाव से अवगत कराया जाएगा। प्रांतव्यापी ‘बिजली पंचायत’ के बाद राजधानी लखनऊ में 22 दिसंबर को बिजली कर्मचारियों, उपभोक्ताओं और किसानों की विशाल रैली कर ‘बिजली पंचायत’ की जाएगी। उत्तर प्रदेश व चंडीगढ़ में बिजली के निजीकरण के विरोध में 06 दिसंबर को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के साथ उत्तर प्रदेश में समस्त जनपदों व परियोजनाओं पर विरोध प्रदर्शन किये जाएंगे।
संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारी राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, पी.के.दीक्षित, सुहैल आबिद, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो0 इलियास, श्री चन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय एवं विशम्भर सिंह ने पावर कार्पोरेशन प्रबंधन के निजीकरण पर दिए जा रहे बयानों को झूठ का पुलिन्दा बताते हुए कहा है कि सभी कर्मचारी संगठनों ने निजीकरण के प्रस्ताव को चेयरमैन से वार्ता के दौरान ही खारिज कर दिया है।
आज लखनऊ में सभी संगठनों के अध्यक्ष, महामंत्री और अन्य प्रमुख पदाधिकारियों ने एक साथ खड़े होकर शपथ ली कि प्रदेश में किसी प्रकार का बिजली का निजीकरण स्वीकार नहीं किया जायेगा। निजीकरण की किसी भी एकतरफा कार्यवाही का उपभोक्ताओं और किसानों के साथ मिलकर पुरजोर विरोध किया जायेगा
संघर्ष समिति ने कहा कि पावर कारपोरेशन के चेयरमैन की यह बात मान लें कि निजीकरण के बाद कर्मचारी हटाये नहीं जायेंगे तो सवाल यह है कि इन्हीं कर्मचारियों के रहते सुधार हो सकता है तो निजीकरण की क्या जरूरत है। सारी विफलता प्रबन्धन की है। आई.ए.एस. प्रबन्धन की जगह विशेषज्ञ अभियन्ताओं को प्रबन्धन दिया जाये तो एक साल में ही गुणात्मक सुधार की जिम्मेदारी लेने को संघर्ष समिति तैयार है।
संघर्ष समिति ने कहा कि यदि सभी कम्पनियों का चेयरमैन मुख्य सचिव को बनाने का निर्णय है तो प्रबन्ध निदेशक निजी कम्पनी का बनाने के बजाय प्रबन्ध निदेश विभागीय अभियन्ताओं को बनाकर सुधार किया जाये। उन्होंने कहा कि कर्मचारी किसी भ्रम में नहीं है, जब 51 प्रतिशत भागेदारी निजी कम्पनी की है तो यह टोटल प्राइवेटाईजेशन है जो पूरी तरह अस्वीकार्य है।
पूरे देश के बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों को दो डिस्कॉम के निजीकरण के खिलाफ लड़ रहे उत्तर प्रदेश के अपने साथियों के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए
Statement by All India Power Engineers Federation (AIPEF)
UP POWER PRIVATISATION STRUGGLE
उत्तर प्रदेश में दो बड़ी बिजली वितरण निगमों वाराणसी डिस्कॉम और आगरा डिस्कॉम के निजीकरण की घोषणा की गई है। इन दोनों डिस्कॉम के निजीकरण से 70,000 से अधिक नियमित और आउटसोर्स कर्मचारियों पर छंटनी का खतरा मंडरा रहा है। डर इस बात का है कि उत्तर प्रदेश को बिजली के निजीकरण की प्रयोगशाला बना दिया गया है।
पहले चरण में दो डिस्कॉम के निजीकरण की घोषणा की गई है लेकिन फैसला पूरे वितरण क्षेत्र के निजीकरण का है। आप सभी इस बात से सहमत होंगे कि उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों ने निजीकरण को रोकने के लिए हमेशा बहादुरी से संघर्ष किया है और अपने संघर्ष में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। आज परिस्थितियां बहुत प्रतिकूल हैं। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के 18 शीर्ष पदाधिकारियों को माननीय उच्च न्यायालय में तलब किया गया। अंतरिम आदेश में माननीय उच्च न्यायालय ने हड़ताल और बिजली व्यवधान के खिलाफ सख्त चेतावनी दी है।
उच्च न्यायालय ने बिजली क्षेत्र में हड़ताल पर रोक लगा दी है। इस जनहित याचिका का निस्तारण अभी तक उच्च न्यायालय में नहीं हुआ है। इसके अलावा संघर्ष समिति के शीर्ष पदाधिकारियों पर एस्मा व अन्य कई आपराधिक धाराओं के उल्लंघन के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है। समझौते के बावजूद मुकदमा वापस नहीं लिया गया है और उत्पीड़नात्मक कार्रवाई वापस नहीं ली गई है। उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी इन बातों से डरने वाले नहीं हैं। लेकिन वे माननीय उच्च न्यायालय के आदेश से बंधे हुए हैं, क्योंकि अंतरिम आदेश में शीर्ष पदाधिकारियों के नाम अंकित हैं।
ऐसी परिस्थितियों में हम निजीकरण के जनविरोधी निर्णय के खिलाफ व्यापक संघर्ष व जनांदोलन खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। आज उत्तर प्रदेश में जो कुछ हो रहा है, वह पूरे देश के लिए एक नजारा है। अगर सरकार उत्तर प्रदेश में निजीकरण करने में सफल हो जाती है, तो पूरे देश में निजीकरण का काम करने में सरकार को कोई दिक्कत नहीं आएगी। इसलिए यह समय है, जब पूरे देश के बिजली कर्मचारियों व इंजीनियरों को उत्तर प्रदेश के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए और इसकी ठोस रणनीति तुरंत बनानी चाहिए।
इंकलाब जिंदाबाद। एआईपीईएफ
Circular of All India Federation of Electricity Employees (AIFEE)
Massive demonstrations held in Lucknow & other districts of Uttar Pradesh against decision to privatise two power distribution companies
Report of Vidyut Karmchari Sanyukt Sangharsh Samiti